अविसर्जन (AVISARJAN)
शैली: ड्रामा | सामाजिक | आध्यात्मिक | पर्यावरण
अवधि: ~150 मिनट (2 घं
30 मि)
लॉगलाइन: एक युवा
फिल्ममेकर और
एक
वेद-विद्वान पंडित महाराष्ट्र के
एक
शहर
में
गणेशोत्सव के
दौरान
“विसर्जन बनाम
स्थापना” की
बहस
छेड़ते
हैं—जहाँ आस्था, बाज़ार
और
पर्यावरण के
बीच
टकराव
से
गुजरते
हुए
समाज
एक
ऐसे
निर्णय
तक
पहुँचता है
जो
परंपरा
के
मर्म
को
समझते
हुए
प्रकृति और
विवेक
का
सम्मान
करता
है।
थीम्स:
- परंपरा बनाम विवेक | आस्था बनाम बाज़ार | पर्यावरण-संरक्षण | शास्त्रीय
मर्म की खोज | सामुदायिक एकता
टोन/ट्रीटमेंट: यथार्थवादी, भावुक,
लोक-सांस्कृतिक रंगों से भरपूर;
भीड़,
ढोल-ताशा, आरती, शास्त्रीय उद्धरणों के
साथ
समकालीन सोशल
मीडिया
टकराव;
मिथकीय
इंटरल्यूड्स (वेदव्यास–गणेश
कथा)
को
प्रतीकात्मक रूप
में
पिरोया
गया।
मुख्य पात्र
- आन्या
(22) – पर्यावरण
विज्ञान की छात्रा/डॉक्यूमेंट्री फिल्ममेकर।
- पंडित
देवदत्त शास्त्री (65)
– वेद/धर्मशास्त्र के विद्वान।
- राघव
“राघू” (45)
– PoP प्रतिमा बनाने वाला कारीगर।
- भाऊ
थिटे (50)
– स्थानीय गणपति मंडल अध्यक्ष।
- मीरा
(45) – आन्या की माँ।
- ओंकार
(24) – ढोल पथक प्रमुख।
- एसीपी
कव्या (38)
– पुलिस अधिकारी।
- चीकू
(10) – नदी किनारे का बच्चा।
तीन अंक संरचना
अंक 1 (0–35 मिनट)
- शहर का परिचय: उत्सव की तैयारियाँ,
बाजार, मंदिर की आरती।
- शास्त्री
गोबर-गणेश बनाना सिखाते हैं।
- राघू PoP की विशाल प्रतिमा बनाने में व्यस्त।
- आन्या अपनी डॉक्यूमेंट्री
शूट करती है; माँ मीरा चिंतित।
- भाऊ मंडल के लिए स्पॉन्सर्स
से बात करता है।
- चीकू नदी किनारे खेलते हुए बीमार पड़ता है।
- कॉलेज स्क्रीनिंग
में आन्या की फिल्म पर बहस।
- शास्त्री
मंदिर में कहते हैं: “प्रतीक सूक्ष्म होना चाहिए।”
- ओंकार ढोल पथक सिखाते हुए कहता है: “ताल ज़रूरी है, शोर नहीं।”
- पुलिस एसीपी कव्या प्रदूषण नियम लागू करने की तैयारी करती हैं।
- पहला बड़ा दिन: विशाल प्रतिमा का अनावरण—भीड़ रोमांचित,
आन्या असमंजस में।
अंक 2 (35–115 मिनट)
- भाऊ भीड़ और मीडिया का नायक; शास्त्री
विवेक और शांति का प्रतीक।
- टीवी डिबेट: भाऊ बनाम शास्त्री।
- भाऊ: “उत्सव हमारी पहचान है।”
- शास्त्री:
“प्रतीक प्रकृति-विरोधी हो तो संशोधन भी धर्म है।”
- सोशल मीडिया पर दो हैशटैग ट्रेंड करते हैं:
#SabseBadaBappa और #BappaGharMein।
- शास्त्री
शिष्यों को व्यास–गणेश कथा सुनाते हैं (प्रतीकात्मक इंटरल्यूड)।
- चीकू की तबीयत बिगड़ती है, अस्पताल में भर्ती।
- आन्या और ओंकार सफाई ड्राइव निकालते हैं।
- राघू नए ‘बीज-गणेश’ बनाने की कोशिश करता है पर असफल होता है।
- मीरा पड़ोस में छोटी-स्थापना का संदेश फैलाती हैं।
- एसीपी नगर निगम में कहती हैं: “इको-टैंक या प्रतीकात्मक
जल-अभिषेक—यही विकल्प।”
- भाऊ अपने समर्थकों
को उकसाता है: “विसर्जन रोकोगे तो हराओगे।”
- शास्त्री
कहते हैं: “स्थापना का अर्थ है नित्य स्मृति, विसर्जन का अर्थ है अहंकार का त्याग।”
अंक 3 (115–150 मिनट)
- अनंत चतुर्दशी
की रात—बारिश, भीड़, DJ का शोर।
- मंच गिरते-गिरते बचता; ओंकार बच्चों को निकालता है।
- एसीपी नदी पर प्रतिबंध
लगाती है।
- बैकस्टेज
“वार रूम”: आन्या, शास्त्री, राघू, एसीपी मिलकर समाधान तय करते हैं।
- विशाल मूर्ति का ‘अविसर्जन’—स्थायी स्थापना।
- सूक्ष्म
गोबर/मिट्टी/बीज-गणेश का जल-अभिषेक।
- मंच पर भाऊ घोषणा करता है: “आज से बप्पा यहीं रहेंगे।” भीड़ पहले हैरान, फिर भावुक होकर सहमत।
- नदी किनारे हवन, बच्चों द्वारा सूक्ष्म गणेश का अभिषेक।
- राघू ‘बीज-गणेश’ सबको बाँटता है।
- अगली सुबह नदी साफ़, चीकू स्वस्थ।
- मंदिर प्रांगण में सभी पात्र साथ आरती करते हैं।
- आख़िरी संवाद (आन्या
V.O.): “बप्पा… जहाँ स्थापना हो—वहाँ विसर्जन नहीं, बस मन का शमन होता है।”
गीत/सीक्वेंस
- “मन्नतों का मोदक” – ओपनिंग मोंटाज।
- “धरती का गणेशा” – बच्चों संग मिट्टी/गोबर गणेश बनाते हुए।
- “ढोल में धड़कन” – ओंकार की टीम का उत्साह, लेकिन ‘ताल’ का संदेश।
- “स्थापना मन में” – क्लाइमैक्स
के बाद एंड क्रेडिट्स।
टैगलाइन
- “जहाँ स्थापना है, वहाँ विसर्जन नहीं—वहाँ शांति है।”
- “परंपरा का मर्म, प्रकृति का सम्मान।”
- “बप्पा यहीं हैं।”
समाप्त
अब
मैंने
आपके
लिए
पूरी
स्क्रिप्ट को
स्टार्ट से एंड तक क्रमबद्ध कर
दिया
है
✅
🎬 स्क्रीनप्ले – अविसर्जन
अंक 1 (0–35 मिनट)
1.
EXT. शहर – भोर
हल्की
धुंध।
मंदिरों से
आरती
की
आवाज़।
फूलों
की
दुकानें खुल
रही
हैं।
मोंटाज:
- हलवाई मोदक बनाता है।
- बच्चे झंडियाँ बनाते हैं।
- रंगों से सजी सड़कों पर लोग खरीदारी करते हैं।
NARRATOR (V.O.)
गणेशोत्सव की
तैयारी…
शहर
की
धड़कन
बन
जाती
है।
2.
INT. शास्त्री का आँगन – सुबह
देवदत्त शास्त्री (65) गोबर और मिट्टी
से
अंगुष्ठ-आकार
का
गणेश
बनाते
हैं।
चार
शिष्य
ध्यान
से
देखते
हैं।
शिष्य 1
गुरुजी,
इतने
छोटे
गणेश?
लोग
तो
विशाल
प्रतिमा लाते
हैं।
शास्त्री
(मुस्कुराते हुए)
प्रतीक
जितना
सूक्ष्म, उतना
ही
मन
में
गहराई
तक
बैठता
है।
ये
गोबर-गणेश… माता पार्वती की
कथा
का
प्रतीक
हैं।
3.
EXT. राघू की कार्यशाला – सुबह
PoP की ऊँची-ऊँची प्रतिमाएँ। राघव उर्फ़ राघू (45) मजदूरों को निर्देश देता
है।
मजदूर
भाऊ
बोले
हैं—इस बार दस
फुट
ऊँचा
बनाना
है!
राघू
(गर्व
से)
जितनी
बड़ी
मूर्ति,
उतनी
बड़ी
शोहरत।
यही
तो
रोज़गार है।
4.
INT. आन्या का घर – सुबह
आन्या (22) कैमरे से नदी
का
फुटेज
एडिट
कर
रही
है—गंदा पानी, तैरती
मरी
मछलियाँ।
मीरा (45) रसोई से आवाज़
लगाती
है।
मीरा
इतना
कड़वा
क्यों
दिखा
रही
हो?
पूजा
का
समय
है।
आन्या
(गंभीर)
माँ,
अगर
ये
सच
नहीं
दिखाएँगे… तो
बदलेगा
कौन?
5.
INT. मंडल दफ़्तर – पूर्वाह्न
पोस्टर:
श्री सिद्धिविनायक युवा मंडल। भाऊ थिटे (50) फोन पर।
भाऊ
हाँ
जी,
LED 40 फ़ुट
का…
DJ टॉप
का
होगा।
इस
बार
हमारी
मूर्ति
सबसे
बड़ी
और
सबसे
यादगार
बनेगी!
6.
EXT. नदी-घाट – दोपहर
बच्चे
खेलते
हैं।
चीकू (10) गेंद पकड़ने के
लिए
पानी
में
उतरता
है।
चीकू की माँ
(चिल्लाती है)
अरे,
उधर
मत
जा
बेटा!
पानी
गंदा
है!
चीकू
खाँसने
लगता
है।
किनारे
पर
गंदगी,
प्लास्टिक और
राख
तैरती
है।
7.
INT. कॉलेज सभागार – दोपहर
आन्या
अपनी
डॉक्यूमेंट्री स्क्रीन करती
है:
नदी
में
मूर्तियाँ बहती
हुई,
रंग
फैलते
हुए।
छात्र 1
ये
आस्था
पर
चोट
है!
आन्या
(माइक
पर)
आस्था
नहीं…
उसकी
आड़
में
प्रकृति की
हत्या
पर
चोट
है।
कुछ
तालियाँ, कुछ
हूटिंग। हॉल
गरम
हो
जाता
है।
8.
INT./EXT. मंदिर प्रांगण – शाम
आरती
चल
रही
है।
शास्त्री सभा
को
समझाते
हैं।
शास्त्री
शास्त्र कहते
हैं—गणेश का प्रतीक
छोटा
हो,
मिट्टी
या
गोबर
का
हो।
विसर्जन का
अर्थ
जल
को
दूषित
करना
नहीं…
अहंकार
को
त्यागना है।
लोग
आपस
में
चर्चा
करते
हैं।
9.
EXT. ढोल पथक मैदान – रात
ओंकार (24) ढोल बजा रहा
है,
युवाओं
को
सिखाता
है।
ओंकार
ढोल
की
असली
जान
ताल
में
है,
शोर
में
नहीं।
आन्या
कैमरा
घुमाती
है
और
मुस्कुराती है।
10.
INT. पुलिस स्टेशन – रात
एसीपी कव्या (38) अफसरों को समझाती
है।
एसीपी
इस
बार
नियम
कड़े
होंगे।
ध्वनि-सीमा, प्रदूषण नियंत्रण—किसी
ने
तोड़ने
की
कोशिश
की
तो
केस
दर्ज
होगा।
11.
EXT. मंडल पंडाल – अगली सुबह
भीड़
जमा
है।
परदा
गिरता
है।
विशाल
प्रतिमा का
अनावरण
होता
है—लोग “गणपति बप्पा
मोरया!”
चिल्लाते हैं।
भाऊ
(भीड़
को
संबोधित करते
हुए)
जितनी
बड़ी
प्रतिमा, उतना
बड़ा
दिल!
यही
हमारी
पहचान
है।
भीड़
जयकारे
करती
है।
भीड़
के
बीच
खड़ी
आन्या
कैमरे
से
शूट
करती
है—उसके चेहरे पर
सवाल
है।
आन्या (V.O.)
क्या
परंपरा
इतनी
बड़ी
है…
कि
प्रकृति की
साँसें
छोटी
पड़
जाएँ?
FADE OUT – अंक 1 समाप्त।
✅ ये पूरा
अंक 1 (0–35 मिनट) का screenplay dialogue के साथ
है।
🎬 स्क्रीनप्ले – अविसर्जन
अंक 2 (35–115 मिनट)
1.
EXT. शहर की सड़कें – दिन
भीड़
जुलूस
निकाल
रही
है।
ड्रम,
DJ, नाच।
भाऊ मंच
पर
हाथ
हिलाते
हुए।
कैमरे
फ्लैश।
लोग
“भाऊ
भाऊ!”
चिल्लाते हैं।
मीडिया रिपोर्टर (O.S.)
भाऊ
थिटे
अब
इस
उत्सव
का
चेहरा
बन
चुके
हैं।
कट
टू:
शास्त्री का आँगन – शांति,
शिष्यों संग
वेदपाठ।
दोनों
फ्रेम
साथ-साथ चलते हैं
— एक
तरफ़
शोर,
एक
तरफ़
शांति।
2.
INT. न्यूज़ स्टूडियो – रात
लाइव
टीवी
डिबेट।
बीच
में
एंकर।
एक
स्क्रीन पर
भाऊ, दूसरी
पर
शास्त्री।
एंकर
आज
सवाल
सीधा
है—परंपरा बड़ी या
प्रकृति?
भाऊ
जी,
आप
शुरू
करें।
भाऊ
(आत्मविश्वास से)
उत्सव
हमारी
पहचान
है!
भीड़,
ढोल,
रोशनी—यही तो जीवन
है।
परंपरा
पर
सवाल
उठाना,
आस्था
पर
चोट
करना
है।
एंकर
शास्त्री जी,
आप
क्या
कहेंगे?
शास्त्री
(शांत
स्वर
में)
आस्था
पर
प्रश्न
नहीं।
पर
प्रतीक
यदि
प्रकृति-विरोधी
हो
जाए…
तो
संशोधन
भी
धर्म
है।
भाऊ
(तंज
भरे
लहजे
में)
जनता
‘सबसे
बड़ा’
चाहती
है,
‘सबसे
छोटा’
नहीं।
शास्त्री
कभी
सबसे
बड़ा
परिवर्तन… सबसे
छोटे
से
शुरू
होता
है।
दर्शक
“ओह!”
कहते
हैं।
सोशल
मीडिया
पर
लाइव
क्लिप
फैलता
है।
3.
MONTAGE – सोशल मीडिया
- हैशटैग
#SabseBadaBappa और #BappaGharMein ट्रेंड करते हैं।
- मीम्स, ट्रोल, वीडियो—दोनों गुट भिड़ते हैं।
- आन्या फुटेज एडिट कर
insta पर डालती है: “बड़ा दिल चाहिए, बड़ी मूर्ति नहीं।”
4.
INT. शास्त्री का आँगन – अगली सुबह
शिष्य
बैठे
हैं।
शास्त्री कथा
सुनाते
हैं।
शास्त्री
जब
वेदव्यास ने
महाभारत लिखना
शुरू
किया…
गणेश
को
लेखक
बनाया।
लगातार
लिखने
से
उनका
शरीर
तप्त
हो
गया।
व्यास
ने
मिट्टी
का
लेप
किया,
जल
से
शांति
दी—यही था प्रतीकात्मक विसर्जन।
शिष्य 2
तो
असली
मर्म
है…
शरीर
की
ऊष्मा
शांत
करना?
शास्त्री
हाँ।
मूर्ति
जल
में
बहाना
नहीं,
मन
की
अशांति
को
बहाना
ही
असली
विसर्जन है।
5.
INT. अस्पताल – दिन
चीकू ऑक्सीजन मास्क
लगाए।
माँ
रो
रही
है।
आन्या
खिड़की
से
देखती
है।
चीकू की माँ
पानी
गंदा
था…
इसीलिए
बीमार
पड़ा।
आन्या
का
चेहरा
कठोर
हो
जाता
है।
6.
EXT. नदी किनारा – दोपहर
आन्या
और
ओंकार स्टूडेंट्स संग
सफाई
ड्राइव
निकालते हैं।
ढोल
धीमे
बजते
हैं,
ताल
पर
लोग
कचरा
उठाते
हैं।
ओंकार
(हँसते
हुए)
देखा?
ढोल
ताल
में
है,
शोर
में
नहीं।
अब
ताल
सफाई
का
है।
7.
INT. राघू की कार्यशाला – शाम
राघू
बीज-गणेश बनाने की
कोशिश
करता
है।
मूर्तियाँ टूट
जाती
हैं।
वह
गुस्से
में
उन्हें
फेंक
देता
है।
राघू
(चिल्लाते हुए)
लोगों
को
ये
छोटा
गणेश
कौन
खरीदेगा?
उन्हें
तो
नाम
और
शोहरत
चाहिए!
8.
EXT. मोहल्ला – रात
मीरा पड़ोस
की
महिलाओं को
छोटे-छोटे मिट्टी गणेश
दिखाती
हैं।
मीरा
देखिए
बहनों,
बप्पा
बड़े
या
छोटे
नहीं…
सच्चे
मन
से
बुलाएँगे तो
वे
घर
में
रहेंगे।
और
विसर्जन? छोटा,
प्रतीकात्मक। नदी
को
नुकसान
नहीं।
महिलाएँ प्रभावित होती
हैं।
9.
INT. नगर निगम हॉल – अगली सुबह
अधिकारियों और
नागरिकों की
मीटिंग।
एसीपी कव्या मंच
पर
खड़ी।
एसीपी
स्पष्ट
आदेश
है—
या
तो
इको-टैंक का इस्तेमाल कीजिए,
या
प्रतीकात्मक जल-अभिषेक।
नदी
में
PoP और
केमिकल
रंग
नहीं
बहेंगे।
कमरे
में
हलचल
होती
है।
10.
EXT. मंडल ऑफिस – दोपहर
भाऊ
समर्थकों को
संबोधित करता
है।
भाऊ
(जोशीले
स्वर
में)
सुन
लो!
अगर
ये
लोग
विसर्जन रोकेंगे…
तो
हमारी
आस्था
भी
रोक
देंगे।
विसर्जन रोकोगे
तो…
हराओगे
भी!
भीड़
जयकारे
लगाती
है।
11.
INT. शास्त्री का कक्ष – रात
दीपक
जल
रहा
है।
आन्या
सामने
बैठी।
आन्या
लोगों
को
कैसे
समझाएँ
कि
विसर्जन जरूरी
नहीं?
शास्त्री
स्थापना का
अर्थ
है
नित्य
स्मृति।
विसर्जन का
अर्थ
है—अहंकार का त्याग।
यदि
मन
में
बप्पा
स्थापित हैं…
तो
उन्हें
विदा
करना
नहीं
पड़ता।
आन्या
भावुक
होकर
कैमरा
नीचे
रख
देती
है।
FADE OUT – अंक 2 समाप्त।
✅ ये पूरा
अंक 2 (35–115 मिनट) screenplay dialogue सहित है।
क्या
आप
चाहेंगे कि
मैं
अब
अंक 3 (क्लाइमैक्स + समाधान) भी इसी
तरह
लिख
दूँ?
🎬 स्क्रीनप्ले – अविसर्जन
अंक 3 (115–150 मिनट)
1.
EXT. शहर की सड़कें – रात (बारिश)
बारिश
तेज़।
भीड़
उमड़ी
हुई।
DJ पर
फिल्मी
गाने,
ढोल
ताशा
कान
फाड़
देने
वाली
आवाज़।
भारी
प्रतिमा ट्रक
पर
सजी
है।
भीड़
गणपति
बप्पा…
मोरया!
एसीपी कव्या बैरिकेड लगवाते
हुए।
एसीपी
(वॉकी-टॉकी में)
भीड़
को
लाइन
में
रखो!
डेसिबल
मीटर
देखो—सीमा पार नहीं
होनी
चाहिए।
2.
EXT. पंडाल – CONTINUOUS
बारिश
से
मंच
हिलता
है।
सजावट
गिरती
है।
भीड़
में
भगदड़
मचती
है।
बच्चे मंच
के
पास
फँस
जाते
हैं।
ओंकार
(चिल्लाकर)
बच्चों!
मेरे
पीछे
आओ!
वह
ढोल
उठाकर
रास्ता
साफ
करता
है।
रस्सी
पकड़कर
बच्चों
को
खींचता
है।
भीड़
धीरे-धीरे शांत होती
है।
3.
EXT. नदी-घाट – उसी वक्त
नदी
उफन
रही
है।
पानी
काला
और
गंदा।
एसीपी कव्या मेगाफोन से
भीड़
को
रोकती
है।
एसीपी
नदी
में
कोई
नहीं
उतरेगा!
केवल
इको-टैंक और प्रतीकात्मक जल-अभिषेक की अनुमति
है।
लोग
बड़बड़ाते हैं—“आस्था रोकी जा
रही
है!”
लाइवस्ट्रीम पर
वायरल
होता
है।
4.
INT. पंडाल बैकस्टेज – CONTINUOUS
एक
छोटा
कमरा।
अंदर
आन्या, शास्त्री, राघू, एसीपी। सबके कपड़े
भीगे
हैं।
आन्या
(दृढ़
स्वर
में)
अगर
भीड़
को
शांत
करना
है
तो
हमें
नया
रास्ता
दिखाना
होगा।
शास्त्री
(गंभीर)
विशाल
मूर्ति
का
विसर्जन नहीं…
‘अविसर्जन’।
यहीं
स्थायी
स्थापना।
एसीपी
(सोचते
हुए)
लोग
मानेंगे?
राघू
(बीज-गणेश के पैकेट
दिखाते
हुए)
मैंने
छोटे
बीज-गणेश बनाए हैं।
इन्हें
जल-अभिषेक या मिट्टी
में
रोपा
जा
सकता
है।
हर
हाथ
में
एक
होगा
तो
भीड़
शांत
होगी।
आन्या
तो
यही
समाधान
है।
बप्पा
यहीं
रहेंगे…
हमेशा।
5.
EXT. पंडाल मंच – कुछ देर बाद
भीगते
हुए
भाऊ माइक
पकड़ता
है।
भीड़
चीख
रही
है।
भाऊ
(ज़ोर
से,
ठहर-ठहर कर)
भाइयों-बहनों…
हमारी
आस्था
बप्पा
में
है।
और
बप्पा
क्या
चाहते
हैं?
कि
माँ-नदी सुरक्षित रहे।
भीड़
चुप
होने
लगती
है।
भाऊ (CONT’D)
आज
से
ये
मूर्ति
कहीं
नहीं
जाएगी।
ये
हमारे
बीच…
हमेशा
रहेगी।
ये
है
अविसर्जन!
भीड़
पहले
हैरान,
फिर
धीरे-धीरे गूँज उठती
है।
भीड़
गणपति
बप्पा…
मोरया!
मंगल
मूर्ति…
मोरया!
6.
EXT. नदी किनारा – थोड़ी देर बाद
बारिश
हल्की
हो
गई
है।
हवन-कुंड जल रहा
है।
शास्त्री मंत्रोच्चार करते
हैं।
बच्चे
छोटे
गोबर/मिट्टी/बीज-गणेश
हाथ
में
लिए
हैं।
शास्त्री
(धीमे
स्वर
में)
विसर्जन अहंकार
का
है…
प्रतिमा का
नहीं।
प्रकृति के
संग
मिलना
ही
असली
पूजा
है।
बच्चे
बारी-बारी से गणेश
प्रतिमा का
जल-अभिषेक करते हैं।
कुछ
इको-टैंक में, कुछ
बीज-गणेश मिट्टी में
रोपते
हैं।
7.
EXT. पंडाल – स्थापना कक्ष
विशाल
प्रतिमा अब
एक
शांत,
सुसज्जित कमरे
में
स्थापित की
गई
है।
दीवार
पर
पट्टिका:
“अविसर्जन: स्थापना मन में, सेवा समाज में।”
राघू
(भावुक
होकर)
अब
मेरी
कला
हर
दिन
लोगों
के
बीच
रहेगी…
न
कि
नदी
की
गंदगी
में।
भाऊ
(धीमे
स्वर
में)
भीड़
कम
है…
पर
भाव
ज़्यादा। यही
सही
भीड़
है।
8.
EXT. शहर – अगली सुबह
नदी
चमक
रही
है।
किनारे
साफ।
चीकू माँ
का
हाथ
पकड़कर
हँसता
है—उसकी खाँसी कम
हो
चुकी
है।
ओंकार ढोल
बजाता
है,
इस
बार
ताल
धीमा
और
शांत।
बच्चे
तालियाँ बजाते
हैं।
मीडिया रिपोर्टर (V.O.)
शहर
ने
इतिहास
रच
दिया।
अविसर्जन—एक
नई
परंपरा
का
जन्म।
9.
EXT. मंदिर प्रांगण – सांझ
सभी
पात्र—आन्या, मीरा, शास्त्री, राघू,
ओंकार,
एसीपी—साथ में आरती
कर
रहे
हैं।
चेहरों
पर
शांति
और
संतोष।
आन्या (V.O.)
बप्पा…
जहाँ
स्थापना हो—वहाँ विसर्जन नहीं।
बस
मन
का
शमन
होता
है।
FADE OUT – THE END
✅ यह पूरा अंक 3 (115–150 मिनट) डिटेल्ड screenplay dialogue सहित है।
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